उपेक्षा का शिकार बिजासन माता मंदिर, ध्यान दिया जाये तो हैं असीम संभावनाएं,श्रद्धालुओं की है बडी आस्था
चौथ का बरवाड़ा कस्बे के आस पास कई सारी ऐसी प्राचीन धरोहर है जो आम लोगों से अछूती है एवम् उपेक्षा के चलते हैं उनका सही तरह से विकास भी नहीं हो पाया है। ऐसा ही एक अति प्राचीन एतिहासिक धरोहर चौथ का बरवाड़ा में बलरिया तालाब से कुछ आगे ,राय सागर तालाब के पास स्थित है - श्री बिजासन (विजयासन ) माता मंदिर , मन्दिर में चौथ का बरवाड़ा के दक्षिणी छोर पर राय सागर तालाब के पास एक छोटी सी टेकरी पर विराज मान है स्वयं भू माता बिजासन देवी । साथ ही मंदिर परिसर में ही बाबा भैरव नाथ का स्थान भी है ।

शुरू से ही लोगों के मन में मां विजयासन धाम की उत्पत्ति, प्राकट्य, मंदिर निर्माण को लेकर उत्सुकता रही है। लेकिन अभी तक इसके कोई भी ठोस साक्ष्य और प्रमाण नही मिल पाए हैं। समाज सेवी अनेन्द्र आमेरा ने बताया कि लोकमान्यता के अनुसार जब रक्तबीज नामक देत्य से त्रस्त होकर देवता देवी की शरण में पहुंचे। तो देवी ने विकराल रूप धारण कर लिया। और रक्तबीज का संहार कर उस पर विजय पाई। मां भगवति की इस विजय पर देवताओं ने जो आसन दिया, वही विजयासन धाम के नाम से विख्यात हुआ। माता का यह रूप विजयासन देवी कहलाया। पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही किवदंती के अनुसार आज से सेकड़ो वर्ष पूर्व बंजारो द्वारा उनकी मनोकामना पूर्ण होने पर इस मंदिर का निर्माण किया गया था। मंदिर निर्माण और प्रतिमा मिलने की इस कथा के अनुसार पशुओं का व्यापार करने वाले बंजारे इस स्थान पर विश्राम और चारे के लिए रूके। अचानक ही उनके पशु अदृश्य हो गए। इस तरह बंजारे पशुओं को ढूंडने के लिए निकले, तो उनमें से एक बुजुर्ग बंजारे को एक बालिका मिली। बालिका के पूछने पर उसने सारी बात कही। तब बालिका ने कहा की आप यहां देवी के स्थान पर पूजा-अर्चना कर अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते हैं। बंजारे ने कहा कि हमें नही पता है कि मां भगवती का स्थान कहां है। तब बालिका ने संकेत स्थान पर एक पत्थर फेंका। जिस स्थान पर पत्थर फेंका वहां मां भगवती के दर्शन हुए। उन्होंने मां भगवती की पूजा-अर्चना की। कुछ ही देर बाद उनके खोए पशु मिल गए। मन्नत पूरी होने पर बंजारों ने चबूतरे पर देवी जी प्रतिमा की स्थापना की ।
यह घटना बंजारों द्वारा बताये जाने पर लोगों का आना शुरू हो गया और वे भी अपनी मन्नत लेकर आने लगे। धीरे धीरे इस मंदिर में योगी और तांत्रिकों ने योग साधना का मुख्य केंद्र बना लिया । हिंसक जानवरों, योग-योगिनियों का स्थान होने से कुछ लोग यहां पर आने में संकोच करने लगे , तब नाथ सम्प्रदाय के एक योगी ने समीप ही एक ऊंची टेकरी (छोटी पहाड़ी ) पर मंदिर के समीप ही एक धूणे की स्थापना की और इस स्थान को चैतन्य किया है तथा धूणे में एक अभिमंत्रित चिमटा, जिसे तंत्र शक्ति से अभिमंत्रित कर तली में स्थापित किया गया। कालांतर में इस स्थान को ग्वालिपाव जी महाराज के आसन के नाम से जाना जाने लगा । इस मंदिर का वातावरण बड़ा ही शांत है जिस कारण यहां आने वाला व्यक्ति असीम शांति की अनुभूती करता है।अगर कोई श्रद्धालु ध्यान और योगा में रूची रखता है तो यह बेहतर स्थल है । यहाँ समीप ही लोक देवता बाबा देलवार जी का स्थान है साथ ही हनुमान जी का चबूतरा और प्राचीन शिव लिंग स्थापित है । वैसे तो मंदिर चौथ का बरवाड़ा के उन लोगों के सहयोग से कुछ विकसित हो रहा है जो लगातार यहां बिजासन माता के दर्शन करने आते हैं लेकिन फिर भी कई सारी परेशानियां यहां मौजूद है। मंदिर परिसर में हेंडपंप नहीं होने से वहां आने वाले श्रद्धालुओं को पीने के पानी की हर मौसम में परेशानी रहती है। मंदिर के आसपास का क्षेत्र काफी मनमोहक व शानदार है अगर कमेटी बनाकर या अन्य किसी प्रक्रिया द्वारा इस ऐतिहासिक धरोहर से कस्बावासी जुड़े हैं तो यहां भी शानदार विकास हो सकता है। चारों ओर से खुला वातावरण होने के कारण मंदिर के आसपास का दृश्य बड़ा ही मनोहारी लगता है ।पीने के पानी के लिए हेड पंप लगवाने के साथ साथ यदि यहां चारों तरफ कुछ जगह पक्का फर्श भी करवा दिया जाए तो छोटी-मोटी दावतों व पिकनिक स्थल के रूप में भी यह मंदिर विकसित हो सकता है।ग्वालीपाव जी महाराज तक जो सीसी रोड बनाया हुआ है अगर वहां से थोड़ा सा आगे तक रोड और बनवा दिया जाए तो बीजासन माता तक पहुंचने का रास्ता बड़ा ही सुगम हो सकता है।

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