कदम रसूल बाबा ,जहाँ होती हे हर मन्नत पूरी, सभी समाजों की संयुक्त आस्था का प्रतीक


चौथ का बरवाड़ा कस्बे से लगभग सात किलोमीटर दूर गरुडवास(गरडवास) गांव में पहाड़ी पर कदम रसूल बाबा की दरगाह स्थित है। दरगाह अपने आप में कई प्रकार की विशेषता लिए हुए हैं। इस दरगाह पर चौथ का बरवाड़ा के आसपास के क्षेत्र के अलावा दूरदराज से भी कई लोग कदम रसूल बाबा केयहां माथा टेकने आते हैं।

               
               कदम रसूल बाबा दरगाह, गरुडवास

गरुडवास में स्थित यह  दरगाह अपना विशेष ऐतिहासिक महत्व भी रखती है ।दरगाह से जुड़ी जानकारी संकलित करने पर पाया गया कि यह दरगाह लगभग 700 वर्ष  से अधिक पुरानी है ।

दरगाह लगभग 700 वर्ष से अधिक पुरानी है वरिष्ठ पत्रकार एडवोकेट अजय शेखर दवे ने बताया कि 1301 ईस्वी में जब अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भोर पर आक्रमण किया था उस समय अलाउद्दीन खिलजी की सेना कुछ समय के लिए गरुडवास नामक स्थान पर रुकी थी ।


यहीं पर अलाउद्दीन खिलजी के हकीम कदम रसूल का निधन हो गया था और उन्हें वहीं पर दफनाया गया था।
   उनकी याद में इस पहाड़ पर जो दरगाह बनाई गई उस दरगाह का नाम कदम रसूल दरगाह है ।गांव वाले इस दरगाह को बड़ी ही चमत्कारी दरगाह मानते हैं ।

 आस पास स्थित गांव बलरिया,गरुडवास आदि के ग्रामीणों ने बताया कि इस दरगाह के आसपास के सभी क्षेत्रों में किसी प्रकार की कोई प्राकृतिक आपदा जैसे ओलावृष्टि आदि नहीं होती है। खास बात यह है कि कदम रसूल बाबा के यहां धोकडे के वृक्ष लगे हुए हैं ।

 धोकडा एक ऐसा वृक्ष है जो बहुत ही कम पाया जाता है । कदम रसूल दरगाह के मुजावर रुस्तम खान ने बताया कि कभी भी कोई व्यक्ति इस पहाड़ी पर स्थित धोकडे के वृक्षों को नहीं काटता है। बरसात के मौसम में जब ये वृक्ष हरे हो जाते हैं तब दूर से ही कदम रसूल बाबा की पहाड़ी बहुत ही मनमोहक नजर आती है।
 
             

                  कदम रसूल बाबा पहाड़ी

आस पास के ग्राम वासियों के सहयोग से यहां सीढीयां भी बनाई गई है और धीरे-धीरे अन्य सुविधाओं को भी पूरा किया जाएगा। दो साल पहले यहां चढ़ने के लिए सीढ़ियां नहीं थी लेकिन वर्तमान में ग्राम वासियों के सहयोग से नीचे स्थित रोड से दरगाह तक जाने के लिए पूरी सीढीयां बना दी गई है ।

दरगाह की एक विशेष बात यह भी है कि जहां दरगाह स्थित है उसकी एक तरफ कच्चे पत्थर पाए जाते हैं जबकि दूसरी तरफ पक्के पत्थर पाए जाते हैं। यह इस दरगाह को विशेष बनाते हैं।

    पौराणिक कथाओं में बताया जाता है कि कभी किसी चोर ने दरगाह में चोरी करने की कोशिश की थी तो पीर बाबा ने उसके शरीर को पत्थर का बना दिया। जिसका घुटना व सिर दरगाह में पड़ा हुआ है ।

हर गुरुवार के दिन दरगाह में दर्शनार्थियों की अत्यधिक भीड़ होती है। साल में एक बार दरगाह में भंडारे का आयोजन भी किया जाता है जिसमें सभी ग्रामवासी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं ।

प्रशासन की अनदेखी के चलते ग्रामवासी मिलजुलकर दरगाह के विकास कार्य में लगातार आर्थिक मदद कर रहें हैं।और इसमें सभी समाज मदद कर रहे हैं। वर्तमान में दरगाह के ऊपर पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है इसके लिए ग्रामवासी लगातार संघर्षरत है और धीरे-धीरे पीने के पानी की व्यवस्था के लिए भी प्रयत्नशील है ।

ग्रामवासियों ने सहयोग करके दरगाह के ऊपर एक बरामदा बनवाया है। इसमें एक साथ अधिक व्यक्ति नमाज़ पढ़ सकते हैं। दरगाह के सबसे ऊपरी छोर से देखने पर आसपास का दृश्य बड़ा ही रमणीक नजर आता है।

 दरगाह की सीढियां चढ़ते समय रास्ते में एक दरगाह आती है जिसे दादासा की दरगाह कहा जाता है ।जिन महिलाओं के संतान सुख नहीं है वे बाबा से मन्नत मांग कर यहां पालना बांधती है ।और संतान सुख प्राप्त होने पर पुनः दरबार में हाजिरी लगाती है।



  दरगाह के पास ही एक और पहाड़ी स्थित है जिस पहाड़ी पर कभी भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ ने समय व्यतीत किया था जिसके चलते इसी जगह का नाम गरुड़ वास पड़ा।

     कदम रसूल बाबा की दरगाह तक जाने के लिए मोटरसाइकिल या निजी वाहन लेकर जा सकते हैं।इसके अलावा अन्य साधन भी मिलते हैं जो कि आपको दरगाह जाने के लिए शुरू होने वाली सीढ़ियों के बिल्कुल पास तक छोड़ देते हैं जहां से सीढीयां चढ़कर बड़ी आसानी से दरगाह तक पहुंचा जा सकता है।    

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